vbt theory in hindi.संयोजकता बंध सिद्धांत के अनुसार, रासायनिक बंध का निर्माण दो परमाणुओं के अर्ध-पूरित कक्षकों के अतिव्यापन से होता है, जिसमें विपरीत चक्रण वाले इलेक्ट्रॉनों का युग्मन शामिल होता है। यह सिद्धांत सहसंयोजी बंधों की दिशा और संरचना को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन कुछ बंधों जैसे उप-सहसंयोजी बंध और अनुनादी संरचनाओं को स्पष्ट नहीं कर पाता। संयोजकता बंध सिद्धांत और मोलेक्यूलर ऑर्बिटल थ्योरी (MOT) में अंतर और इसके उपयोगों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें।
vbt theory in hindi
संयोजकता बंध सिद्धांत (Valence Bond Theory) (VBT)
VBT का पूर्ण रूप: Valence Bond Theory
संयोजकता बंध सिद्धांत के सिद्धांत (Postulates)
हम जानते हैं कि कक्षक (orbital) में विपरीत चक्रण (spin) वाले इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या दो हो सकती है। जब तक कक्षक में इस तरह के इलेक्ट्रॉन युग्म (pair) उपस्थित होते हैं, तब तक ये रासायनिक संयोजन के लिए उपलब्ध नहीं होते हैं।
- बंधुता के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक परमाणु में एक अयुग्मित (unpaired) इलेक्ट्रॉन होना चाहिए, जो युग्मता (pairing) में भाग ले सके। तत्व की संयोजकता इस प्रकार से परमाणु में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या होती है।
- यह सिद्धांत PCI5, SF6 आदि के निर्माण को नहीं समझाता।
- यह किसी इलेक्ट्रॉन बंध (singlet linkage) तथा त्रि-इलेक्ट्रॉन बंध (three-electron bond) की उपस्थिति को नहीं समझाता है।
- यह उप-सहसंयोजी बंध (co-ordinate bond) के निर्माण को नहीं मानता, क्योंकि इस सिद्धांत में यह माना गया है कि साझित इलेक्ट्रॉन, विभिन्न परमाणु बनाते हैं।
सिद्धांत के महत्वपूर्ण अधिग्रहण (Postulates)
- अर्ध-पूरित कक्षक का अतिव्यापन (overlapping): सहसंयोजी बंध का निर्माण एक परमाणु की अर्ध-पूरित कक्षक तथा दूसरे परमाणु की अर्ध-पूरित कक्षक के अतिव्यापन द्वारा होता है।
- विपरीत चक्रण वाले इलेक्ट्रॉन: रासायनिक बंध का निर्माण तब ही होता है जब दो विपरीत चक्रण वाले इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं।
- अधिकतम अतिव्यापन: प्रबल बंध का निर्माण ऐसे दो परमाणुओं के कक्षकों के मध्य होता है जिनमें अधिकतम अतिव्यापन होता है।
- बंध निर्माण में भाग लेने वाले कक्षक: केवल उन इलेक्ट्रॉनों के कक्षकों का अतिव्यापन संभव है जो बंध निर्माण में भाग लेते हैं।
- बंध निर्माण की दिशा: बंध निर्माण की दिशा उस दिशा में होगी जिसमें कक्षक की संख्या अधिक होगी।
- s-कुक्षक: s-कुक्षक वृतीय सममित (spherically symmetrical) होते हैं, इसलिए उनकी कोई विशेष दिशा नहीं होती है। p और d कक्षक अधिकतम घनत्व वाली दिशा में बंध बनाने का प्रयत्न करते हैं।
उदाहरण
ऑक्सीजन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
है। इस विन्यास के अनुसार 1s, 2s तथा 2p_x कक्षक पूर्ण हैं, जबकि 2p_y और 2p_z कक्षक में एक-एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं। इस प्रकार से ऑक्सीजन की संयोजकता दो है।
नाइट्रोजन का विन्यास
होता है। यहाँ सभी 2p कक्षक अयुग्मित हैं, इसलिए नाइट्रोजन की संयोजकता तीन है।
VBT और MOT (Molecular Orbital Theory) में अंतर
- VBT का मूल मंत्र: जब दो एटम एक मॉलिक्यूल बनते हैं, तो उनके वैलेंस इलेक्ट्रॉन्स एक दूसरे के साथ अपने एटॉमिक ऑर्बिटल को ओवरलैप करते हैं और एक नया मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल बनाते हैं, जिससे कोवेलेंट बांड का निर्माण होता है।
- MOT का मूल मंत्र: नए ऑर्बिटल्स, एटॉमिक ऑर्बिटल्स के कॉम्बिनेशन से बनते हैं और इनमें इलेक्ट्रॉन्स होते हैं।
- VBT के अनुसार: एटम के वैलेंस इलेक्ट्रॉन्स एक दूसरे के साथ इंटरेक्ट करते हैं और यह इंटरेक्शन एटॉमिक ऑर्बिटल के ओवरलैप से होता है।
- MOT के अनुसार: नए ऑर्बिटल्स एटॉमिक ऑर्बिटल्स के कॉम्बिनेशन से बनते हैं और इन्हें इलेक्ट्रॉन्स के वितरण के लिए उपयोग किया जाता है।
VBT और CFT (Crystal Field Theory) में अंतर
- VBT: इस थ्योरी के अनुसार दो वैलेंस इलेक्ट्रॉन्स एक दूसरे के साथ ओवरलैप करते हैं और एक नया मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल बनाते हैं।
- CFT: इस थ्योरी के अनुसार ट्रांजीशन मेटल आयन के आस-पास के लिगैंड्स के कारण ट्रांजीशन मेटल के d-ऑर्बिटल अलग-अलग एनर्जी लेवल पर हो जाते हैं, जिससे इलेक्ट्रॉन वितरण और कॉम्प्लेक्स की ज्योमेट्री को समझने में मदद मिलती है।
VBT की सीमाएँ (Limitations)
- उप-सहसंयोजी बंध के निर्माण को नहीं समझाता।
- सहसंयोजक बंध के आयनिक गुणों को स्पष्ट नहीं कर सकता।
- अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति को नहीं समझा सकता।
- अनुनादी संरचनाओं को स्पष्ट नहीं कर सकता।
जैसे आयनों के निर्माण को नहीं समझा सकता।
- इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिकों, धातुओं तथा अधात्विक यौगिकों में बंधन को स्पष्ट नहीं कर सकता।
निष्कर्ष
संयोजकता बंध सिद्धांत का महत्वपूर्ण योगदान रासायनिक बंधों की दिशा और संरचना को समझाने में है, लेकिन इसकी सीमाओं के कारण यह सभी रासायनिक घटनाओं को स्पष्ट नहीं कर सकता। इसके बाद मोलेक्यूलर ऑर्बिटल थ्योरी (MOT) ने इन समस्याओं का समाधान करने में मदद की है।