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Sushruta Samhita uttar vedik kaal Parmparagat Rasayan Vigyan यूनिट 1

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Sushruta Samhita uttar vedik kaal Parmparagat Rasayan Vigyan यूनिट 1

Sushruta Samhita विषय बीएससी प्रथम वर्ष के माइनर -1 के रसायनशास्त्र से सम्बंधित हैं|जिसमे आप जानेगे उत्तर वैदिक काल के परंपरागत रसायन विज्ञान के बारे मैं आज हम केवल Sushruta Samhita के बारे में समझेंगे |

Sushruta कौन थे?

सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्सक थे।उन्हें “शल्य तंत्र” (सर्जरी) का जनक (Father of Surgery) कहा जाता है।

सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्सक और “शल्य चिकित्सा (Surgery)” के जनक माने जाते हैं। उन्हें आयुर्वेद के तीन प्रमुख आचार्यों में से एक माना गया है — अन्य दो हैं चरक (आंतरिक चिकित्सा) और वाग्भट्ट (संहिताओं के संग्राहक)।
उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना “Sushruta Samhita” है, जो चिकित्सा विज्ञान और विशेषकर शल्य चिकित्सा का विस्तृत ग्रंथ है।

सुश्रुत का काल (Time Period):

विद्वानों में मतभेद है, लेकिन अधिकांश विद्वान 600 ईसा पूर्व (6th Century BCE) के आसपास सुश्रुत का काल मानते हैं।कुछ विद्वान इन्हें कौशिक वंश से भी जोड़ते हैं और इनके गुरु दिवोदास धन्वंतरि माने जाते हैं।

सुश्रुत की शिक्षा:

सुश्रुत ने आयुर्वेद का गहन अध्ययन काशी (वर्तमान वाराणसी) में किया।वे आयुर्वेदाचार्य दिवोदास (धन्वंतरि) के शिष्य थे, जो स्वयं भगवान धन्वंतरि के वंशज माने जाते हैं।

Sushruta Samhita क्या है?

  • यह एक चिकित्सा ग्रंथ है, जो आयुर्वेद के शल्य चिकित्सा विभाग से संबंधित है।

  • इसमें शरीर रचना (anatomy), रोग निदान, औषधि निर्माण, और सर्जरी की विधियाँ बताई गई हैं।

Sushruta Samhita आयुर्वेद का एक महान ग्रंथ है, जिसे महर्षि सुश्रुत द्वारा रचित माना जाता है। यह प्राचीन भारत के चिकित्सा ज्ञान का अमूल्य दस्तावेज है, विशेष रूप से शल्य चिकित्सा (Surgery) में इसकी भूमिका अद्वितीय है।

ग्रंथ का स्वरूप

Sushruta Samhita संस्कृत में रचित है और इसमें कुल 120 अध्याय तथा लगभग 1860 श्लोक हैं।इसे “शल्य तंत्र” का आधार स्तंभ माना जाता है, क्योंकि इसमें मुख्य रूप से सर्जरी (Surgery) पर ज़ोर है।

शरीर रचना (Anatomy)

यह ग्रंथ शरीर की संरचना, हड्डियाँ (अस्थियाँ), स्नायु, नाड़ियाँ, धमनियाँ और अंगों का विस्तृत वर्णन करता है।उदाहरण: इसमें 360 हड्डियों का उल्लेख है और शरीर को 7 धातुओं से निर्मित माना गया है।

रोग निदान (Diagnosis)

  • रोग की पहचान करने के लिए:

    • दृष्टि (Observation)

    • स्पर्श (Palpation)

    • प्रश्न पूछना (Interrogation)

  • यह त्रिविध परीक्षा (तीन प्रकार की जाँच) के आधार पर रोग को समझने की सलाह देता है।

औषधि निर्माण (Medicine Preparation)

  • Sushruta Samhita में औषधियों के वर्ग, जैसे कि जड़ी-बूटियाँ, धातु, खनिज आदि के प्रयोग बताए गए हैं।

  • इसमें बताया गया है कि किस रोग के लिए कौन-सी औषधि कैसे बनानी और उपयोग करनी है।

शल्य चिकित्सा (Surgery)

  • यह ग्रंथ सर्जरी के 8 प्रकार बताता है जैसे कि:

    1. छेदन (Incision)

    2. भेदन (Excision)

    3. लेखन (Scraping)

    4. एषण (Probing)

    5. आहरण (Extraction)

    6. विस्रवण (Drainage)

    7. सीवन (Suturing)

    8. वेधन (Puncturing)

  • उदाहरण: नाक की प्लास्टिक सर्जरी (Rhinoplasty) का पहला उल्लेख इसी ग्रंथ में मिलता है।

सेनेटेशन और अस्पताल प्रणाली

  • सुश्रुत संहिता में डॉक्टरों और सर्जनों के लिए:

    • स्वच्छता के नियम

    • औजारों को शुद्ध रखने की विधियाँ

    • रोगियों को अलग रखने की सलाह दी गई है

  • यह अपने समय की अग्रिम चिकित्सा व्यवस्था को दर्शाता है।

चिकित्सक के गुण

  • एक आदर्श चिकित्सक में निम्न गुण बताए गए हैं:

    • ज्ञान

    • अनुभव

    • करुणा

    • धैर्य

  • चिकित्सक को हमेशा मरीज की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए।

Sushruta Samhita न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में चिकित्सा के इतिहास का एक मील का पत्थर है। इसका प्रभाव आधुनिक शल्य चिकित्सा और आयुर्वेदिक पद्धतियों में आज भी देखा जा सकता है। यह ग्रंथ यह प्रमाणित करता है कि प्राचीन भारत चिकित्सा विज्ञान में अत्यंत समृद्ध था।

रसायन विज्ञान से संबंध:

कुछ औषधियों में क्षार (Alkali) और अम्ल (Acidic substances) का प्रयोग उल्लेखनीय है।इनका प्रयोग विशेषत: फोड़े-फुंसी, जलने के उपचार तथा त्वचा रोगों में किया जाता था।Sushruta Samhita  में भस्म (Ash preparations) बनाने की विधियाँ हैं, जो रसायन विज्ञान का एक महत्वपूर्ण भाग हैं।जैसे — स्वर्ण भस्म, लोह भस्म, यशद भस्म आदि का निर्माण व प्रयोग।

 इन विधियों में धातु को विभिन्न द्रवों (जैसे नींबू का रस, गोमूत्र आदि) में डालकर आग में तपाना शामिल है — जो एक प्रकार की रासायनिक अभिक्रिया (Chemical Reaction) है।ग्रंथ में कई धातुओं जैसे — सोना (Swarna), चांदी (Rajat), लोहा (Loha), ताम्र (Copper) आदि का उपयोग चिकित्सा में बताया गया है।इन्हें शुद्ध करने, गलाने, पीसने और औषधि के रूप में उपयोग करने की विधियाँ दी गई हैं।

यह एक तरह से रासायनिक शुद्धिकरण (Purification) और धातु प्रसंस्करण (Processing of Metals) का विवरण है।

Sushruta Samhita केवल चिकित्सा का ही ग्रंथ नहीं है, बल्कि इसमें उस युग के पारंपरिक रसायन विज्ञान (Traditional Chemistry) की भी झलक मिलती है। यह ग्रंथ आयुर्वेद में धातुओं, खनिजों, जड़ी-बूटियों, औषधियों के निर्माण व प्रयोग के संदर्भ में रसायन विज्ञान से जुड़ा हुआ है।

यहाँ विस्तार से बताया गया है कि “Sushruta Samhita  का रसायन विज्ञान से क्या संबंध है?

सुश्रुत संहिता और रसायन विज्ञान: विस्तृत विवरण

1. धातु-विद्या (Metallurgy)

ग्रंथ में कई धातुओं जैसे — सोना (Swarna), चांदी (Rajat), लोहा (Loha), ताम्र (Copper) आदि का उपयोग चिकित्सा में बताया गया है।इन्हें शुद्ध करने, गलाने, पीसने और औषधि के रूप में उपयोग करने की विधियाँ दी गई हैं।यह एक तरह से रासायनिक शुद्धिकरण (Purification) और धातु प्रसंस्करण (Processing of Metals) का विवरण है।

भस्म निर्माण (Calcination Techniques)

Sushruta Samhita में भस्म (Ash preparations) बनाने की विधियाँ हैं, जो रसायन विज्ञान का एक महत्वपूर्ण भाग हैं।जैसे — स्वर्ण भस्म, लोह भस्म, यशद भस्म आदि का निर्माण व प्रयोग।इन विधियों में धातु को विभिन्न द्रवों (जैसे नींबू का रस, गोमूत्र आदि) में डालकर आग में तपाना शामिल है — जो एक प्रकार की रासायनिक अभिक्रिया (Chemical Reaction) है।

अल्कली और अम्ल प्रयोग (Use of Acids and Alkalies)

कुछ औषधियों में क्षार (Alkali) और अम्ल (Acidic substances) का प्रयोग उल्लेखनीय है।इनका प्रयोग विशेषत: फोड़े-फुंसी, जलने के उपचार तथा त्वचा रोगों में किया जाता था।

संरक्षण विधियाँ (Preservation Techniques)

औषधियों को नमी, कीटाणु और खराबी से बचाने के लिए विशेष प्रकार की भंडारण व संरक्षण विधियाँ दी गई हैं।इनमें सुरक्षात्मक लेपन, कांच या मिट्टी के पात्रों का प्रयोग किया जाता है — यह भी रसायन विज्ञान की प्रक्रिया है।

रस-शास्त्र की झलक (Early Rasayana Chemistry)

आयुर्वेद का रसायन विज्ञान यानी रसशास्त्र सुश्रुत संहिता में भी देखने को मिलता है।इसमें ऐसे योग (Preparations) बताए गए हैं जो:उम्र बढ़ाएँ,शारीरिक शक्ति दें,रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएँउदाहरण: “च्यवनप्राश” जैसे रसायन योग का उल्लेख बाद के ग्रंथों में मिलता है, जिसकी जड़ें सुश्रुत संहिता के सिद्धांतों में हैं।

जड़ी-बूटियों की रासायनिक प्रकृति

ग्रंथ में 700 से अधिक औषधीय पौधों का वर्णन है।उनके रस, गुण, वीर्य (Potency), विपाक (Post-digestive effect) के आधार पर रासायनिक प्रभाव को समझाया गया है।

द्रव्यगुण विज्ञान (Materia Medica)

औषधीय द्रव्यों के गुण, कर्म, प्रभाव, और संग्रहीत करने के नियम रसायन शास्त्र की दृष्टि से अत्यंत वैज्ञानिक हैं।➤ जैसे: “त्रिफला” में तीन फलों की सम्मिलित रासायनिक क्रिया का उपयोग किया गया है।

Sushruta Samhita में प्रत्यक्ष रूप से ‘रसायन विज्ञान’ शब्द नहीं मिलता, लेकिन इसकी हर प्रक्रिया — औषधि निर्माण, भस्म बनाना, धातु शुद्धि, और औषधीय गुणों का विश्लेषण — प्राचीन रासायनिक ज्ञान का जीवंत उदाहरण है।यह ग्रंथ सिद्ध करता है कि भारत में रसायन विज्ञान का व्यवहारिक और चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग हजारों वर्षों पहले विकसित था।

औषध निर्माण:

इसमें विभिन्न रस औषधियों, लेप, घृत, अर्क, आदि बनाने की विधियाँ दी गई हैं।इसमें औषधियों को संग्रहित करने की वैज्ञानिक विधियाँ भी बताई गई हैं।

रोगों की व्याख्या:

शारीरिक व मानसिक रोगों, जैसे ज्वर, कुष्ठ, भगंदर, मूत्र विकार आदि का वर्गीकरण और उपचार बताया गया है।

Sushruta Samhita की विशेषताएँ:

  • रोगों का कारण, लक्षण, निदान और उपचार – चारों पक्षों को विस्तार से बताया गया है।

  • यह चिकित्सा पद्धति केवल शरीर नहीं, मन और आत्मा को भी ध्यान में रखती है।

रोगों का कारण (Nidana / Etiology)

Sushruta Samhita में रोगों के मूल कारणों को त्रिदोष सिद्धांत (वात, पित्त, कफ) के आधार पर समझाया गया है।

उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति को बार-बार बुखार आता है, तो सुश्रुत इसे “पित्त दोष” की अधिकता के रूप में देखेंगे, जिसका कारण तीखा भोजन, सूर्य की अधिक गर्मी, और क्रोध माना जाएगा।

लक्षण (Lakshana / Symptoms)

रोगों की पहचान उनके बाहरी और भीतरी लक्षणों के आधार पर की जाती है।

उदाहरण:
ज्वर (बुखार) के लक्षण:

  • सिर दर्द

  • शरीर में जलन

  • शुष्क मुँह

  • पसीना न आना
    इन लक्षणों से सुश्रुत तुरंत रोग की पहचान कर लेते थे।

निदान (Diagnosis)

सुश्रुत रोग का निदान करने के लिए पंचप्रमाण (5 प्रमाण) का उपयोग करते थे:

  1. प्रत्यक्ष (Observation)

  2. अनुमान (Inference)

  3. आप्तोपदेश (Scriptural authority)

  4. उपमान (Comparison)

  5. युक्ति (Logical reasoning)

उदाहरण:
यदि कोई घाव सड़ने लगा है, तो वह देखने में काला हो जाएगा (प्रत्यक्ष), उसमें दुर्गंध होगी (अनुमान), और पिछले शास्त्रों में इसका वर्णन होने पर पुष्टि होगी (आप्तोपदेश)।

उपचार (Treatment)

उपचार के तीन प्रकार माने गए हैं:

  1. शमन (Palliative treatment) – जैसे औषधियों से संतुलन बनाना।

  2. शोधन (Purification) – जैसे वमन, विरेचन, रक्तमोक्षण आदि।

  3. शल्य चिकित्सा (Surgical treatment) – जैसे ऑपरेशन।

उदाहरण:
भगंदर (Fistula) का इलाज सुश्रुत ने कौष्ठिकि सूत्र से किया, जो आज की Kshar Sutra Therapy जैसी प्रक्रिया है।

मन-शरीर आत्मा का संतुलन

सुश्रुत ने चिकित्सा को केवल शरीर तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने कहा –
“धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यमूलमुत्तमम्”
(धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति निरोगी शरीर से होती है।)

उदाहरण:
डिप्रेशन या मानसिक रोग का इलाज सुश्रुत योग, ध्यान और सात्विक भोजन से करने की सलाह देते थे।

शरीर रचना (Anatomy) का ज्ञान

सुश्रुत ने मानव शरीर की 700+ नाड़ियों, 360 हड्डियों, 500 मांसपेशियों का सटीक विवरण दिया।

उदाहरण:
वे शव विच्छेदन (cadaver dissection) की सलाह देते थे — वे कहते हैं कि “सर्जन बनने से पहले छात्र को मृत शरीर का अध्ययन ज़रूरी है।”

शल्य चिकित्सा (Surgery) की उन्नति

सुश्रुत ने 100 से अधिक प्रकार की शल्य क्रियाओं और 300+ औजारों का वर्णन किया। इनमें से कई आज भी उपयोग में लाए जाते हैं।

उदाहरण:

  • नासिकाप्लास्टी (Rhinoplasty) यानी प्लास्टिक सर्जरी।

  • मोतियाबिंद (Cataract) ऑपरेशन के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग।

  • टूटी हड्डियों को जोड़ने के लिए लकड़ी और बंधन पट्टियों का उल्लेख।

Sushruta Samhita केवल एक आयुर्वेदिक ग्रंथ नहीं, बल्कि विज्ञान, रसायन, शरीर-रचना और दर्शन का समन्वय है।
यह उत्तरवैदिक काल की वैज्ञानिक सोच और भारत की पारंपरिक चिकित्सा की समृद्धि को दर्शाता है।

Q1. Sushruta Samhita kya hai?

A1. Sushruta Samhita एक प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ है जो मुख्यतः शल्य चिकित्सा (Surgery) पर आधारित है। इसे महर्षि सुश्रुत द्वारा रचित माना जाता है, और इसमें शरीर रचना, रोग निदान, औषधि निर्माण, और ऑपरेशन की विधियाँ विस्तार से दी गई हैं।

Q2. Sushruta kaun the?

A2. Sushruta प्राचीन भारत के महान चिकित्सक थे, जिन्हें ‘शल्य चिकित्सा का जनक’ कहा जाता है। उन्होंने चिकित्सा विज्ञान में सर्जरी की विधियों को व्यवस्थित किया, जिनमें प्लास्टिक सर्जरी, मोतियाबिंद हटाना, और हड्डियों की सर्जरी प्रमुख हैं।

Q3. Sushruta Samhita ka Ayurveda me kya yogdan hai?

A3. Sushruta Samhita आयुर्वेद के तीन मुख्य स्तंभों में से एक है। यह विशेष रूप से शल्य चिकित्सा और चिकित्सा उपकरणों के उपयोग को बताता है, और आयुर्वेद को एक वैज्ञानिक और प्रयोग आधारित पद्धति बनाता है।

Q4. Sushruta Samhita me sharir rachna (anatomy) ka varnan kaise hai?

A4. इसमें शरीर को काटकर उसकी रचना को समझने की पद्धति दी गई है। सुश्रुत ने नाड़ियों, धमनियों, मांसपेशियों, अस्थियों आदि का विश्लेषण किया और शरीर के अंगों का वर्गीकरण भी प्रस्तुत किया।

Q5. Kya Sushruta Samhita me surgical instruments ka bhi varnan hai?

A5. हाँ, इसमें लगभग 125 से अधिक शल्य चिकित्सा उपकरणों (surgical tools) का वर्णन मिलता है। ये उपकरण धातु, लकड़ी और अन्य सामग्री से बनाए जाते थे, और प्रत्येक का विशेष उपयोग था।

Q6. Sushruta Samhita aur Rasayan Vigyan ka kya sambandh hai?

A6. Sushruta Samhita में औषध निर्माण, धातुओं व खनिजों के प्रयोग, और शरीर पर उनके प्रभाव का विस्तार से वर्णन है, जिससे यह ग्रंथ प्राचीन भारतीय रसायन विज्ञान (Indian Chemistry) से भी जुड़ जाता है।

Q7. Sushruta Samhita me kon-kon si surgeries ka ullekh hai?

A7. इसमें नाक की पुनःस्थापना (plastic surgery), मोतियाबिंद ऑपरेशन, पथरी हटाना, हड्डी जोड़ना, और त्वचा कटाई जैसी कई जटिल शल्य विधियाँ दी गई हैं, जो आधुनिक विज्ञान से भी मेल खाती हैं।

Q8. Kya Sushruta Samhita aaj bhi upyogi hai?

A8. हाँ, आज भी Ayurvedic Colleges, Integrative Medicine, और modern alternative therapy में इसके सिद्धांतों और पद्धतियों को पढ़ाया व अपनाया जाता है।

Q9. Sushruta Samhita kis bhasha me likhi gayi thi?

A9. यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखा गया था, और इसका स्वरूप सूत्र शैली में है ताकि इसे आसानी से याद किया जा सके।

Q10. Kya Sushruta Samhita me preventive medicine ka bhi varnan hai?

A10. हाँ, इसमें रोग से बचाव के लिए दिनचर्या (daily routine), ऋतुचर्या (seasonal regimen), और संतुलित आहार की सिफारिश की गई है।

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