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Charaka aur Sushruta uttar vedik kaal Parmparagat Rasayan Vigyan यूनिट 1

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Charaka aur Sushruta uttar vedik kaal Parmparagat Rasayan Vigyan यूनिट 1

Charaka aur Sushruta विषय बीएससी प्रथम वर्ष के माइनर -1 के रसायनशास्त्र से सम्बंधित हैं|जिसमे आप जानेगे उत्तर वैदिक काल के परंपरागत रसायन विज्ञान के बारे मैं आज हम केवल Charaka aur Sushruta के बारे में समझेंगे |

Charaka aur Sushruta के ज़माने की रसायन की परंपरा – आसान भाषा में

देखो भाई, आज जो हम दवाइयाँ, केमिकल्स और लैब वाले रसायन देखते हैं, उसकी जड़ें बहुत पहले से हमारे देश में थीं। उस ज़माने में लैब तो नहीं होती थी, पर लोग कुदरती चीजों से इलाज करते थे और चीज़ों को मिक्स करके नयी दवाएँ बनाते थे।

अब बात करते हैं Charaka aur Sushruta की – ये दोनों आयुर्वेद के बाप लोग थे। एक डॉक्टर की तरह जो भी बीमारी होती थी, उसका इलाज जड़ी-बूटी, धातु, और खनिज वगैरह से करते थे।जब आज के जमाने में मेडिकल साइंस और केमिस्ट्री की इतनी तरक्की नहीं हुई थी, तब भी भारत में लोग बहुत कुछ जानते थे।
हमारे देश में आयुर्वेद का बड़ा गहरा नाता है रसधात्विक परंपरा यानी देसी केमिस्ट्री से। Charaka aur Sushruta जैसे बड़े वैद्य (डॉक्टर) तो उसी समय के हीरो थे।

चलिए अब विस्तार से समझते हैं:

रसधातु – शरीर की पहली धातु

उस टाइम पे ‘रस’ का मतलब था – शरीर का सबसे पहला पोषक हिस्सा, जो खाना खाने के बाद बनता है। ये रस ही बाकी सब चीजों को बनाता था – खून, मांस, हड्डी, वगैरह। जैसे अभी हम कहते हैं बॉडी को एनर्जी कहाँ से मिलती है, वैसे ही तब लोग बोलते थे – रसधातु से।

जैसे आज हम बोलते हैं कि खाना खाने से एनर्जी मिलती है, वैसा ही उस समय लोग कहते थे कि शरीर में सात धातुएँ बनती हैं –

  1. रस

  2. रक्‍त

  3. मांस

  4. मेद

  5. अस्थि

  6. मज्जा

  7. शुक्र

इनमें सबसे पहली थी रसधातु – मतलब खाना पचने के बाद जो पहला पोषक रस बनता है, वही आगे चलकर खून, मांस और बाकी चीज़ों को बनाता है।

उदाहरण: जैसे आम के रस से आमपना, जैम और आइसक्रीम सब बन सकती है, वैसे ही “रसधातु” से शरीर की बाकी चीज़ें बनती हैं।

दवाइयों की केमिस्ट्री – बिना लैब के रसायन

Charaka aur Sushruta के जमाने में लैब नहीं होती थी, पर उनकी अपनी देसी लैब थी – जंगल, रसोई, मिट्टी के बर्तन, तांबे की कड़ाही और धूप-सूखाई! वो लोग पेड़-पौधे की पत्तियाँ, जड़ें, फलों का रस, गाय का दूध, शहद, घी, यहाँ तक कि धातुएँ तक इस्तेमाल करते थे।

वो लोग जंगल से पत्ते, जड़ें, मिट्टी, पत्थर और यहाँ तक की धातु भी लाते थे – सोना, चांदी, लोहा, अभ्रक वगैरह। फिर उनको धोते, कूटते, पकाते, सुखाते – मतलब एक तरह का देसी केमिस्ट्री लैब चला करते थे।
तब ये सब “काढ़ा”, “भस्म”, “सत्व”, “लवण” जैसे नामों से बनता था।

उदाहरण:

  • हल्दी को पीसकर घाव पर लगाते थे – ये आज भी एंटीसेप्टिक है।

  • अदरक और शहद मिलाकर खांसी की दवा बनती थी।

  • आंवला, बहेरा, हरड़ मिलाकर त्रिफला बनाते थे – जो आज भी पेट और आंखों के लिए अमृत माना जाता है।

धातु और खनिजों का भी इलाज में इस्तेमाल!

अब सुनकर थोड़ा अजीब लगेगा, पर सच है – उस समय लोग सोना, चांदी, तांबा, पारा (mercury), गंधक (sulphur) जैसी धातुएँ भी दवा में डालते थे। लेकिन सीधा नहीं – पहले उसे शुद्ध करते थे, जलाते थे, चूर्ण बनाते थे – जिसे भस्म कहते थे।

आज तो कोई कहेगा सोना खाओ तो लोग हँसेंगे, लेकिन तब सोना, चांदी, पारा, ये सब भी इलाज में चलते थे। पर सीधे नहीं – पहले इनको बहुत प्रोसेस करते थे, आग में जलाते थे, किसी चीज़ में मिलाते थे, ताकि ज़हर निकल जाए और ये दवा बन जाए।

उदाहरण:

  • स्वर्ण भस्म (Gold ash): शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में इस्तेमाल।

  • लौह भस्म (Iron ash): खून की कमी दूर करने में।

  • अभ्रक भस्म (Mica ash): कमजोरी, दमा, और बल बढ़ाने में।

इन सबको बनाने की प्रक्रिया बड़ी लंबी होती थी – जैसे पारा को नींबू रस में रखा जाता, फिर गाय के गोबर के कंडों पर गरम किया जाता। मतलब – एकदम जुगाड़ू साइंस!

केमिस्ट्री का देसी रूप – रसशास्त्र की शुरुआत

रसशास्त्र यानी कीमिया विद्या – जिसमें चीजों को बदलकर कुछ नया बनाया जाता है।
हालाँकि पूरी तरह से रसशास्त्र नागार्जुन जैसे बाद के रसायनज्ञों ने आगे बढ़ाया, लेकिन बीज तो Charaka aur Sushruta के समय ही बो दिए गए थे।

भाई, ये रसशास्त्र कोई आज का नहीं है – इसकी शुरुआत वहीं से हुई थी। पारा (mercury), गंधक (sulphur), अभ्रक (mica) – सबका इस्तेमाल तब होता था।
हाँ, ये बात अलग है कि ये लोग इसे भगवान, योग और आध्यात्म से भी जोड़ते थे। पर असल में वो एक तरह का प्रैक्टिकल साइंस ही था।

उदाहरण:

  • पारा को दूसरे खनिजों से मिलाकर औषधीय योग तैयार करना।

  • भस्मों को शहद या घी में मिलाकर सेवन कराना।

  • विष (जहर) को भी सही तरीके से शुद्ध करके औषधि बनाना (विषौषधि)।

अनुभव से बनी थी ये देसी साइंस

उस समय कोई लैब रिपोर्ट नहीं होती थी, न ब्लड टेस्ट – सब कुछ अनुभव और परख से होता था।चरक संहिता में लिखा है कि वैद्य को हर औषधि का “स्वाद, गुण, और असर” खुद चखकर जानना चाहिए।ना लैब, ना कंप्यूटर, ना रिपोर्ट – जो कुछ था वो अनुभव से। दादी-नानी की तरह – “अरे इस पत्ती को पानी में उबाल, पेट दर्द चला जाएगा” – वैसा ही।
Charaka aur Sushruta ने ये सब अपने अनुभव से लिखा – कौन-सी जड़ी किस बीमारी में काम आती है, कितना लेना है, कैसे बनाना है।

👉 उदाहरण:

  • अगर कोई जड़ी कड़वी है, तो पित्त को शांत करती है।

  • अगर कोई चीज़ गर्म है, तो वात को ठीक करती है।

  • ठंडी चीज़ें – जैसे गुड़, शतावरी – शरीर को ठंडक देती हैं।

आयुर्वेदिक दवाओं की देसी केमिस्ट्री

इनके टाइम पर जो दवाएँ बनती थीं, वो अलग-अलग रूपों में होती थीं:

दवा का रूप मतलब
काढ़ा पानी में औषधियों को उबालकर अर्क निकालना
चूर्ण सूखी औषधियों को पीसकर पाउडर बनाना
भस्म धातुओं को जलाकर राख बनाना
तैल औषधियों को तेल में पकाकर औषधि बनाना
घृत औषधियों को घी में पकाना
सत्व पौधों के रस को सुखाकर बनाना

निष्कर्ष – हमारे देश की देसी साइंस की जड़ें

आज जो मेडिकल साइंस और केमिस्ट्री का रौब है, वो बहुत हद तक हमारे पूर्वजों की मेहनत और देसी जुगाड़ से ही निकला है। Charaka aur Sushruta जैसे लोगों ने बिना लैब, बिना मशीने, बिना कंप्यूटर – बस अपने अनुभव, प्रकृति और समझदारी से वो सब कर दिखाया जो आज की साइंस भी मानती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q1. Charaka aur Sushruta कौन थे?

Charaka aur Sushruta प्राचीन भारत के प्रसिद्ध वैद्य थे। चरक आंतरिक चिकित्सा (Medicine) के विशेषज्ञ थे, जबकि सुश्रुत शल्य चिकित्सा (Surgery) के जनक माने जाते हैं।

Q2. प्राचीन रसायन विज्ञान में Charaka aur Sushruta का क्या योगदान था?

Charaka aur Sushruta ने जड़ी-बूटियों, धातुओं और खनिजों का उपयोग करके औषधियाँ तैयार करने की विधियाँ बताईं। ये आज के आयुर्वेद और रसायन शास्त्र की नींव मानी जाती हैं।

Q3. क्या Charaka aur Sushruta धातुओं और खनिजों का इस्तेमाल दवाओं में करते थे?

हाँ, Charaka aur Sushruta सोना, चांदी, लोहा, पारा आदि धातुओं को शुद्ध करके भस्म के रूप में दवाओं में उपयोग करते थे। ये भस्में आज भी आयुर्वेद में प्रयोग होती हैं।

Q4. Charaka aur Sushruta की विधियाँ कितनी वैज्ञानिक थीं?

Charaka aur Sushruta की विधियाँ अनुभव और प्रकृति पर आधारित थीं। उन्होंने औषधियों के गुण, प्रभाव और उपयोग पर गहरी जानकारी दी थी जो आज की विज्ञान आधारित चिकित्सा का आधार बनी।

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