Shankhya Darshan uttar vedik kaal Parmparagat Rasayan Vigyan यूनिट 1
नमस्कार प्यारे विधार्थियों,मुझे यह सूचित करते हुए अच्छा लग रहा हैं कि उच्च शिक्षा विभाग ,भोपाल द्वारा सत्र -2025-26 बीएससी एवं अन्य विषयों के पाठ्यक्रम को परिवर्तित करके एक नए पाठ्यक्रम को शामिल किया गया हैं,जो विधार्थियों के भविष्य के लिए बहुत ही उपयोगी होगा|
Shankhya Darshan विषय बीएससी प्रथम वर्ष के माइनर -1 के रसायनशास्त्र से सम्बंधित हैं|जिसमे आप जानेगे उत्तर वैदिक काल के परंपरागत रसायन विज्ञान के बारे मैं आज हम केवल Shankhya Darshan के बारे में समझेंगे |
उत्तर वैदिक काल का परंपरागत रसायन विज्ञान
बच्चों उत्तर वैदिक काल (Approximately 1000 ई.पू. – 600 ई.पू ) का कहलाता हैं जो ऋग्वेदिक काल के बाद का समय था |यह काल वैदिक साहित्य के विकास, दर्शन, समाज, राजनीति, धर्म और विज्ञान में गहरी प्रगति का काल माना जाता है। इस समय की जानकारी मुख्यतः ब्राह्मण ग्रंथों, आरण्यकों और उपनिषदों से प्राप्त होती है।
उत्तरवैदिक काल की प्रमुख विशेषताएँ:
1. दर्शन और ज्ञान की उन्नति:
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इस काल में षड्दर्शन (Shankhya Darshan, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदांत) की नींव पड़ी।
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उपनिषदों में ब्रह्म, आत्मा, संसार और मोक्ष जैसे गहन दार्शनिक विषयों की चर्चा हुई।
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यह काल विचारप्रधान था, जहाँ भौतिक जगत के पीछे छिपे तत्वों और कारणों को जानने की कोशिश की गई।
2. रसायन, औषधि और खगोल विज्ञान की प्रगति:
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आयुर्वेद की आधारशिला रखी गई, जिसमें चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों ने रसायन, शल्यचिकित्सा और औषधियों का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया।
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रसायन शास्त्र (Alchemy) के प्राचीन स्वरूप – जैसे धातु परिवर्तन, औषध निर्माण, शरीर की दीर्घायु के प्रयोग – इस काल में विकसित होने लगे।
3. सामाजिक परिवर्तन:
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वर्ण व्यवस्था अधिक कठोर हो गई।
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यज्ञों और कर्मकांडों की प्रधानता रही, लेकिन उपनिषदों ने आंतरिक ज्ञान को अधिक महत्व दिया।
4. धार्मिक विकास:
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कर्मकांडों की आलोचना के साथ-साथ आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान की ओर झुकाव बढ़ा।
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बौद्ध और जैन धर्म का उदय इसी समय हुआ, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहित करते थे।
उत्तरवैदिक काल और रसायन विज्ञान (पारंपरिक वैज्ञानिक ज्ञान):
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इस युग में रसायन को मुख्यतः धातु विज्ञान, औषध निर्माण, और रसशास्त्र के रूप में देखा गया।
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रसशास्त्र की प्रारंभिक अवधारणाएँ जैसे रस, गुण, वीर्य, विपाक, प्रभाव आदि औषधियों और पदार्थों के अध्ययन से जुड़ी थीं।
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चरक और सुश्रुत के ग्रंथों में दवाओं की संरचना, मिश्रण और उपयोग के विस्तृत विवरण हैं जो पारंपरिक रसायन विज्ञान की नींव थे।
पारंपरिक” शब्द का अर्थ होता है — परंपरा से चला आ रहा, अर्थात् जो लंबे समय से किसी संस्कृति, समाज या पीढ़ी द्वारा अपनाया गया हो।
उदाहरण (रसायन विज्ञान के सन्दर्भ में):
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पारंपरिक रसायन विज्ञान → वह रसायन विज्ञान जो आधुनिक प्रयोगशाला तकनीकों से पहले, आयुर्वेद, धातु विज्ञान, और रसशास्त्र जैसे भारतीय शास्त्रों में मिलता है।
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पारंपरिक औषधियाँ → वे दवाइयाँ जो प्राचीन ग्रंथों (चरक संहिता, सुश्रुत संहिता) के अनुसार बनाई जाती थीं।
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पारंपरिक ज्ञान प्रणाली → जैसे वेद, उपनिषद, दर्शनों में निहित भौतिक तत्त्वों का ज्ञान।
सांख्य दर्शन को सरल भाषा में समझें
1. प्रकृति क्या है?
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यह वह मूल पदार्थ है जिससे सारा ब्रह्मांड बना है।
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इसमें जड़ता (non-living nature) होती है – यह खुद से कोई निर्णय नहीं लेती, परंतु इससे हर चीज़ उत्पन्न होती है।
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इसके अंदर तीन गुण होते हैं – सत्त्व (ज्ञान), रजस् (क्रिया), तमस् (जड़ता)। जब इनका संतुलन बिगड़ता है, तब सृष्टि होती है।
उदाहरण:
जैसे एक बीज (प्रकृति) है – वह खुद से कुछ नहीं कहता, पर समय और स्थिति मिलते ही उसमें से पौधा, पेड़, फल, पत्तियाँ – सब कुछ निकल आता है।
2. पुरुष क्या है?
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यह चेतन तत्व है – यानी आत्मा या “साक्षी भाव”।
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यह कुछ करता नहीं है, केवल देखता है, अनुभव करता है, पर इसमें कोई बदलाव नहीं आता।
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यह निष्क्रिय दर्शक (Passive Observer) है।
उदाहरण:
जैसे आप सिनेमा हॉल में बैठे हैं –
स्क्रीन पर एक्शन, गाने, युद्ध, दुख-सुख सब चल रहा है (यह सब “प्रकृति” का खेल है)।
पर आप दर्शक होकर केवल देख रहे हैं, आप उस दृश्य में भाग नहीं ले रहे।
अब इन दोनों को एक साथ समझते हैं:
टीवी और दर्शक का उदाहरण:
तत्व | उदाहरण में | सांख्य दर्शन में |
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टीवी | जो चल रही है, आवाज़, रंग, मूवमेंट दिखा रही है | प्रकृति (जो दुनिया चलाती है – शरीर, मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ) |
दर्शक | जो टीवी देख रहा है, पर न उसमें भाग ले रहा है, न बदल रहा है | पुरुष (आत्मा – केवल साक्षी, कर्म में भाग नहीं लेता) |
सृष्टि की प्रक्रिया – 24 तत्त्व
जब प्रकृति सक्रिय होती है, तो उससे क्रमशः 24 तत्त्व बनते हैं। इन तत्त्वों से ही सारा ब्रह्मांड बना है।
1. प्रकृति (मूल कारण)
2. महत्त (बुद्धि – विचार करने की शक्ति)
3. अहंकार (मैं-भाव)
4-8. तन्मात्राएँ – पाँच सूक्ष्म तत्व
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शब्द (sound)
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स्पर्श (touch)
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रूप (form)
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रस (taste)
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गंध (smell)
9-13. महाभूत – पाँच स्थूल तत्व
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आकाश
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वायु
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अग्नि
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जल
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पृथ्वी
14-18. ज्ञानेन्द्रियाँ – देखने, सुनने आदि के लिए
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आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा
19-23. कर्मेन्द्रियाँ – क्रियाएँ करने के लिए
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हाथ, पैर, मुंह, मलद्वार, जननेंद्रिय
24. मन – जो इन्द्रियों को निर्देश देता है
ये सभी मिलकर बताते हैं कि इंसान और जगत किस तरह काम करता है – यानी हमारी सोच, अनुभव, शरीर, तत्व – सब कुछ।
विषय | विवरण |
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दर्शन का नाम | Shankhya Darshan |
प्रवर्तक | कपिल मुनि |
मुख्य तत्व | प्रकृति (जड़) और पुरुष (चेतन) |
कुल तत्त्व | 24 प्रकृति से + 1 पुरुष = 25 तत्त्व |
उद्देश्य | ज्ञान से मोक्ष प्राप्त करना |
Shankhya Darshan – FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. Shankhya Darshan के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर: कपिल मुनि
Q2. Shankhya Darshan में कुल कितने तत्त्व माने गए हैं?
उत्तर: कुल 25 तत्त्व —
24 तत्त्व प्रकृति से और 1 तत्त्व पुरुष (आत्मा)
Q3. Shankhya Darshan कौन-सा वाद है — अद्वैत या द्वैत?
🔹 उत्तर: द्वैतवाद, क्योंकि यह दो स्वतंत्र तत्त्वों को मानता है — प्रकृति और पुरुष।
Q4. प्रकृति के कौन-कौन से गुण होते हैं?
उत्तर: तीन गुण होते हैं —
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सत्त्व (ज्ञान/शांति)
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रजस् (गति/क्रिया)
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तमस् (जड़ता/अंधकार)
Q5. Shankhya Darshan के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति कैसे होती है?
उत्तर:
जब प्रकृति के तीन गुणों (सत्त्व, रजस्, तमस्) में असंतुलन आता है और पुरुष की उपस्थिति होती है, तब सृष्टि की उत्पत्ति होती है।
Q6. पुरुष क्या करता है?
🔹 उत्तर: पुरुष (आत्मा) कुछ नहीं करता, केवल साक्षीभाव से देखता है। वह न बदलता है, न क्रिया करता है।
Q7. मोक्ष (मुक्ति) कैसे मिलती है सांख्य दर्शन में?
🔹 उत्तर:
जब पुरुष यह जान लेता है कि वह प्रकृति से अलग है, तब उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
यह ज्ञान के माध्यम से होता है, न कि पूजा-पाठ से।
Q8. क्या Shankhya Darshan ईश्वर को मानता है?
उत्तर:
नहीं, सांख्य दर्शन नास्तिक दर्शन है — यह ईश्वर की आवश्यकता नहीं मानता।
Q9. ‘महत्त’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति से उत्पन्न पहला तत्त्व है “महत्त” यानी बुद्धि।
Q10. Shankhya Darshan का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पुरुष (आत्मा) और प्रकृति (सृष्टि) का अंतर समझकर मोक्ष पाना।
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